लोग क्‍या सोचते हैं - Through Their Eyes (By Sh. Raj Kumar Dogra)

एक बार की बात है कि राजा और वजीर भेस बदल कर सैर पर जा रहे थे। अचानक राजा के मन में विचार आया कि लोग मेरे बारे में क्‍या सोचते हैं? वजीर से सलाह की तो वजीर ने भी सहमति जताई तथाकहा : राजन लोग भी आप के बारे में वही कुछ सोचते हैं जो कुछ आप लोगों के बारे में सोचते हैं फिर भी पुष्‍टी करने के लिए लोगों से पूछ लेते हैं। भेष बदला ही था और लोग पहचान नहीं रहे थे। इतने में सामने से एक लकड़हारा आता दिखाई दिया। वजीर ने पहले राजा से लकड़हारे के बारे में विचारजानने चाहे। राजा बोला: लकड़हारा बड़ा धूर्त है, इसने जंगल काट-काट कर खाली कर दिये हैं फिर भी गरीब होने का ढोंग करता है मेरा तो दिल करता है कि, इसकी सिर की लकडि़यों से इसकी चिता बना दूं। इतने में लकड़हारा पास आ गया तो वजीर ने पूछा: ए भाई आप यहां के राजा के बारे में क्‍या सोचते हो। लकड़हारा: यहां के राजा के राज में हमें गरीबी से कभी छुटकारा नहीं मिल सकता। कभी महंगाई बढ़ा देता तो कभी इसके आदमी लकडि़यां छीन लेते हैं। ऐसे क्रूर राजे से तो मौत ही छुटकारा दिला सकती है। सामने से एक बूढ़ी औरत आती दिखाई दी तो वजीर ने राजा के विचार पूछें। राजा: यह औरत बहुत बूढ़ी है पता नहीं कैसे गुजर वसर कर रही है? चाहता हूं कि इसको कुछ पैंशन लगा दूं। इतने में बूढ़ी औरत पास आ पहुंची तो उससे भी राजा के बारे में पूछा तो औरत बोली: हमारा राजा बड़ा दयावान है और बहुत अच्‍छा है। मेरी उमर भी मेरे राजा को लग जाए। इतने में सामने से वाणिया आता दिखाई दिया। उसके बारे में राजा के विचार थे: यह ब्‍याज खोर वाणिया ब्‍याज पर ब्‍याज खाता है। इसने मेरी सारी प्रजा को ही गरीब कर दि‍या है। मेरा दिल चाहता है कि इस का सारा पैसा छीन कर लोगों में बाँट दूं। वही बात वजीर ने वाणिये से पूछी तो वाणिया बोला: ऐसा राजा, कंजूस, मक्‍खीचूस, राजा बनने के योग्‍य नहीं है, मेरा बस चले तो राजा को गद्दी से उतारकर, खजाना लोगों को बाँट दूं। सारांश :- जो आप लोगों के बारे में सोचते हैं लोग भी आपके बारे में वही या वैसा ही कुछ सोचते हैं। यानि कि आपके विचार ही वापिस आपके पास आ जाते हैं अत: औरों के बारे में सदा शुभ ही शुभ इच्‍छा रखो। सुख दु:ख सुख दु:ख दोनों भाई भाई दोनों का जग में है जोडा़। सुख के पीछे लगा हुआ है, सभी कही दु:ख थोडा़ थोडा़, (Repeat) सुख के पीछे लगा हुआ है सभी कहीं दु:ख थोडा़ थोडा़। सुख में फूले नहीं समाते तो दु:ख में क्‍यों आता है रोना? सुख की तरह मुसीबत में भी सीखे तुम हंसना खुश होना।

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