बाबा भारती एक संत स्वभाव के, धर्मात्मा और त्यागी व्यक्ति थे। उनके पास एक सुंदर और अद्भुत घोड़ा था — जिसका नाम था सुल्तान। वह घोड़ा अत्यंत तेज़, वफादार और सुंदर था। बाबा उस घोड़े को बहुत प्यार करते थे, लेकिन कभी घमंड नहीं करते थे। डकैत खड़गसिंह की नज़र: एक दिन प्रसिद्ध डकैत खड़गसिंह की नज़र बाबा भारती के सुल्तान पर पड़ी। वह घोड़े की सुंदरता से बहुत प्रभावित हुआ और उसे पाने की ठान ली। खड़गसिंह ने बाबा भारती से घोड़ा माँगा, लेकिन बाबा ने विनम्रता से मना कर दिया और कहा: "मैं ये घोड़ा किसी को नहीं दे सकता, क्योंकि यह मेरे जीवन का एकमात्र सुख है।" खड़गसिंह ने ठान लिया कि अब वह चालाकी से वह घोड़ा चुराएगा। चालाकी से चोरी: एक रात बाबा भारती कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक घायल व्यक्ति की कराह सुनाई दी। बाबा रुक गए और देखा कि कोई आदमी ज़मीन पर पड़ा दर्द में कराह रहा है। यह सब खड़गसिंह की चाल थी। बाबा ने दया में आकर उसे अपने घोड़े पर बैठाया। जैसे ही वह बैठा, वह तेजी से घोड़ा लेकर भाग गया। बाबा भारती पीछे से चिल्लाए: “घोड़ा ले जा, लेकिन किसी से मत कहना कि तूने यह घोड़ा एक संत से धोखे से लिया है… वरना लोग किसी पर दया करना छोड़ देंगे।” पश्चाताप और नैतिक संदेश: खड़गसिंह को बाबा भारती की यह बात बहुत चुभ गई। वह अपराधबोध से भर गया। अगली सुबह वह बाबा भारती के द्वार पर आया — घोड़े को लौटाने और माफ़ी माँगने के लिए। बाबा भारती ने उसे माफ कर दिया। कहानी से शिक्षा (Moral): दूसरों की दया का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। ईमानदारी और पश्चाताप से कोई भी व्यक्ति सुधर सकता है। संतों की बातों में गहराई और समाज के लिए संदेश छुपा होता है। अच्छाई हमेशा जीतती है।
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