किसी छोटे से गाँव में राम नाम का एक युवक रहता था। राम एक साधारण परिवार से था, पर उसके मन में कुछ बड़ा करने की चाह थी। बचपन से ही उसके मन में दूसरों की मदद करने और समाज में कुछ अच्छा करने का भाव था। परंतु राम के लिए यह साफ़ नहीं था कि वह किस प्रकार अपनी सेवा को सार्थक बना सके। राम के पिता एक शिक्षक थे, जिन्होंने राम को बचपन से ही ईमानदारी, अनुशासन, और सेवा भाव का पाठ पढ़ाया था। "बेटा," वे कहते, "सेवा का मतलब केवल किसी को खाना देना या वस्त्र देना नहीं है, सेवा का सच्चा अर्थ है दूसरों के दिलों को छूना, उनके दुःख में साथ देना और अपनी क्षमता के अनुसार हमेशा समाज के हित के लिए काम करना।" पर राम को यह बात पूरी तरह से समझ नहीं आई थी। वह सोचता था कि सेवा करने के लिए बहुत बड़ा होना या पैसे वाला होना ज़रूरी है। एक बार, गाँव में बाढ़ आई। पूरे गाँव के लोग परेशान थे, खेत पानी से भर गए, और लोग अपने घरों को बचाने के लिए चिंतित थे। उस समय राम ने महसूस किया कि सेवा का अर्थ कितना गहरा है। राम ने देखा कि कई लोग खुद की सुरक्षा के लिए भाग रहे थे, पर कुछ बूढ़े और बीमार लोग मदद के लिए चिल्ला रहे थे। राम ने बिना देर किए, अपने हाथ-पैर जोड़ कर उन लोगों की मदद करना शुरू किया। उसने अपने घर के पास के कुछ युवक भी साथ मिलाकर राहत कार्य शुरू किया। वे पीने का पानी, भोजन और दवाइयां बाँटने लगे। कुछ ही दिनों में राम की मेहनत और सेवा भाव पूरे गाँव में मशहूर हो गई। लोग उसे देखकर प्रेरित हुए और सेवा का अर्थ समझने लगे। इस अनुभव ने राम के जीवन की दिशा ही बदल दी। उसने महसूस किया कि सेवा के लिए कोई बड़ा होना जरूरी नहीं, बस दिल का बड़ा होना चाहिए। राम ने अपने गाँव में एक छोटा सा सेवा केंद्र बनाया, जहां गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाने लगी, बीमारों को दवाइयां उपलब्ध कराई जाने लगीं, और बुजुर्गों के लिए आरामदायक जगह बनाई गई। धीरे-धीरे गाँव का माहौल बदल गया। सभी लोग एक-दूसरे की मदद करने लगे, और गाँव खुशहाल हो गया। राम की सेवा भावना ने उसे एक सच्चा योगी बना दिया। वह समझ गया कि योग केवल आसन और ध्यान तक सीमित नहीं है, योग का अर्थ है अपने मन को, अपने विचारों को, और अपने कर्मों को दूसरों की भलाई में लगाना। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सेवा का कोई छोटा या बड़ा रूप नहीं होता। सेवा का मतलब है दूसरों के दुःख में अपना दुःख समझना, और अपनी शक्ति के अनुसार उन्हें सहारा देना। यही मानवता की असली पहचान है। राम की तरह हम सभी के भीतर सेवा की भावना होती है, बस उसे जागृत करने की आवश्यकता होती है। सेवा से मन शुद्ध होता है, आत्मा की उन्नति होती है, और जीवन सफल बनता है।
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