रमेश एक मध्यवर्गीय परिवार का युवक था। बचपन से ही वह शारीरिक रूप से कमजोर और जल्दी थक जाने वाला था। स्कूल में खेलों में वह सबसे कमजोर रहता था। घर वाले भी उसकी सेहत को लेकर चिंतित रहते थे। एक दिन उसके पिता ने उसे शहर के एक प्रसिद्ध योग केंद्र में भेजा, जहाँ योगाचार्य महर्षि गुप्ता पढ़ाते थे। रमेश ने सोचा, “योग से तो मैं स्वस्थ हो सकता हूँ, कम से कम खेलों में तो बेहतर बन जाऊंगा।” लेकिन जब उसने योग सीखना शुरू किया, तो शुरुआत बहुत कठिन रही। आसन करते-करते उसकी कमर में दर्द होता, प्राणायाम करते समय सांस अटक जाती। मन में बार-बार हार मानने का विचार आता, पर रमेश के गुरु महर्षि गुप्ता ने उसे हमेशा हिम्मत दी। “धैर्य रखो, बेटा,” वे कहते, “योग साधना कोई जल्दी का खेल नहीं है। यह समर्पण और निरंतर अभ्यास मांगती है। जैसे एक बीज को अंकुरित होने में समय लगता है, वैसे ही तुम्हें भी अपना शरीर और मन मजबूत करने के लिए वक्त देना होगा।” रमेश ने दिन-रात अभ्यास करना शुरू किया। उसने अपने खान-पान में सुधार किया, रात को जल्दी सोना शुरू किया और सुबह योग के लिए उठता। कई बार जब शरीर और मन थक जाते, तब भी वह अपनी साधना छोड़ता नहीं था। धीरे-धीरे उसकी सेहत में सुधार होने लगा। उसका पाचन ठीक हुआ, नींद अच्छी आने लगी और उसके शरीर में ताकत आई। महर्षि गुप्ता ने उसे बताया कि योग सिर्फ आसन और प्राणायाम नहीं है। “योग का अर्थ है मन को नियंत्रित करना, भावनाओं को समझना और आत्मा के साथ जुड़ना। ध्यान के माध्यम से तुम अपने अंदर के तनाव, क्रोध और भय को दूर कर सकते हो।” रमेश ने ध्यान का अभ्यास भी शुरू किया। शुरू में मन भटकता था, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह रोज कम से कम आधा घंटा ध्यान में बैठता। धीरे-धीरे उसके अंदर शांति और स्थिरता आई। वह पहले की तुलना में अधिक समझदार और शांत स्वभाव का हो गया। एक दिन, योग केंद्र में एक प्रतियोगिता रखी गई, जिसमें विभिन्न योग मुद्राएँ और प्राणायाम की दक्षता जानी गई। रमेश ने पूरी तैयारी के साथ हिस्सा लिया। वह जानता था कि जीतना जरूरी नहीं, बल्कि साधना का फल मिलना जरूरी है। पर नतीजे में रमेश ने पहला स्थान हासिल किया। उसने अपनी कड़ी मेहनत, धैर्य और समर्पण से सबको प्रेरित किया। गुरु महर्षि गुप्ता भी बहुत खुश हुए और उन्होंने कहा, “देखा बेटा, योग साधना का असली फल समय के साथ और मेहनत के साथ ही मिलता है।” रमेश का आत्मविश्वास बढ़ा और वह समाज में भी योग का प्रचार-प्रसार करने लगा। उसने अपने गाँव में छोटे-छोटे बच्चों को योग सिखाना शुरू किया ताकि वे भी स्वस्थ और मजबूत बन सकें। शिक्षा: यह कहानी हमें सिखाती है कि योग साधना में सफलता पाने के लिए धैर्य और समर्पण सबसे महत्वपूर्ण हैं। कोई भी बड़ा परिवर्तन तुरंत नहीं होता, इसके लिए निरंतर अभ्यास, संयम और विश्वास जरूरी है। योग न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्थिरता और आत्मिक विकास का माध्यम है। जब हम मन को नियंत्रित करना सीख लेते हैं, तब जीवन के हर संघर्ष से आसानी से निपट सकते हैं।
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